विकारों को उलटना ताकि भजन सुमिरन बने
क्रोध रूपी विकार को भजन सुमिरन में उन्नति के लिए मोडा जा सकता हे ! जब कोई हमें नापसंद आने वाला काम करता हे तो हम उसे सुधारने की कोशिश करते हे और अगर वो नही मानता तो हम बोलते हे यह व्यक्ति किसी काम का नही। पर जब भजन सुमिरन की बारी आती हे तो हम अपने आपका को पुरी तरह माफ़ कर देते हे और अपने आप को सुधारने की बात आती हे तो जो जोश दुसरो को सुधारने के लिए आता हे वो अपने केस में गायब हो जाता हे।
दुसरो पर क्रोध निकलने की जगह क्या हमने कभी अपने मन के ऊपर चपेट मारकर उसे सुधारने की कोशिश की हे? कभी उसे कहा की " तूझे हर हालत में भजन करना हे " पर होता यह हे की हम कहते हे मेरे निर्बल मन ! भजन तेरे लिए बहुत मुश्किल हे अगर तुझे जरुरत से अधिक दबाऊंगा तो तू विद्रोह कर देगा और मेरे ऊपर हावी हो जाएगा। जा तूझे माफ़ किया। भजन सुमिरन का अनुशासन लागु करने में हम एकदम क्षमा का रुप बन जाते हे! हम पूरा यतन न करने पर अपने आप को तो माफ़ कर देते हे पर दुसरो के साथ व्यवहार करते समय कभी आपने आप पर लगाम नही देते।
जबकि होना बिल्कुल इसके उलट चाहिए अगर क्रोध करना हे तो अपने मन पर कर हमें अपने मन से कहना चाहिए " तू मेरा क्या हाल कर रहा हे ? तू मुझे कुमार्ग पर ले जा रहा हे तू चुपचाप भजन सुमिरन कर।
From Book " Haun Jeevan Naam Dhiaa'e"
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